Special Report: अपनी जिम्मेदारी निभाएं प्राइवेट अस्पताल

Special Report: अपनी जिम्मेदारी निभाएं प्राइवेट अस्पताल

नरजिस हुसैन

यह बात  सही है कि कोई भी प्राइवेट अस्पताल इस वक्त सभी तरह के मरीजों को देखने का घाटे का सौदा नहीं करना चाहता लेकिन, इसी नफे-नुकसान के खेल में अपनी बेसिक जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेना कहां तक सही है। एक और बड़ी वजह जो प्राइवेट सेक्टर इस वक्त बता रहा है वह है गैर-कोरोना और कोरोना के इलाज पर बढ़ा हुआ खर्च और अस्पतालों का गिरता मुनाफा। इसी बात के डर से दिल्ली समेत कई राज्यों में प्राईवेट अस्पताल मरीजों के इलाज से कतरा रहे हैं। अच्छा, इसका सीधा असर मरीजों पर भी दिखाई पड़ रहा है मसलन अब प्राइवेट अस्पतालों में सर्जरी के लिए जाने वालों में कैंसर, डायलसिस और हड्डी फ्रैक्चर के मामले ही ज्यादा आ रहे है। लेकिन, कॉसमेटिक सर्जरी और घुटने बदलने जैसी सर्जरी फिलहाल पूरी तरह से रुक गई है जिससे अस्पतालों को आर्थिक रूप से ज्यादा फायदा होता था। प्राइवेट अस्पतालों का कहना है कि आज करीब-करीब हर सर्जरी पर 25 प्रतिशत तक का खर्च बढ़ गया है। फिक्की के मुताबिक कोविड से पहले इन अस्पतालों का मुनाफा 59,000 करोड़ रुपए से घटकर 18,000 करोड़ रुपए होने की उम्मीद है। यानी पूरे 22,000 करोड़ रुपए का घाटा इस वक्त प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर को हो रहा है। इनका मानना है कि और सेक्टरों की तरह मौजूदा दौर में यह स्टाफ भी न तो कम कर सकते हैं और न ही हटा सकते हैं। यानी कुल मिलाकर हर सूरत में इनको घाटा है कोविड के मरीज को देखने में भी और न देखने में भी।

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सरकार ने इन अस्पतालों को टेस्टिंग के भी सीधे कोई निर्देश जारी नहीं किए हैं। कुछ सरकार की अपनी भी बाते उलझीं हुई हैं। कोरोना की शुरूआती दौर में जब आईसीएमआर ने टेस्टिंग पर जोर दिया था तभी इनकी कीमतों की बात उठी थी जो काफी विवादास्पद रही थी। कोरोना जांच की कीमतें सरकार ने 4,500 से लेकर, 1,800, 800 और 500 रुपए तय की थी। अब सरकार के आगे बड़ा सवाल यह था कि उसकी तमाम जनता इन कीमतों पर खुद से जांच करवा नहीं सकती थी और जब तक करवाने अस्पतालों में जाती भी तब तक न जानें कितने ही लोगों को इंफेक्ट भी करती जाती और इसी यह सिलसिला जारी रहता। फिर प्राइवेट अस्पताल कम कीमतों की टेस्ट किट रखने को तैयार नहीं क्योंकि उनका कहना था कि 4,500 रुपए की किट एकदम सही और कम समय में जांच की रिपोर्ट देती है। बहरहाल, काफी शोर-शराबे के बाद सरकार ने यह फैसला लिया कि प्राइवेट अस्पताल कोरोना की टेस्टिंग अपने हिसाब से करने को आजाद हैं।

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भूगोलिकरण के दो दशकों में देश में स्वास्थ्य में धीरे-धीरे प्राइवेट सेक्टर ने सरकारी सेक्टर से बढ़त बना ली है। बावजूद इसके 2.4 लाख करोड़ रुपए वाले इस प्राइवेट सेक्टर ने जन स्वास्थ्य पर आई इस मुसीबत से पल्ला झाड़ लिया है। आज पूरे देश में कोविड के मरीजों का इलाज सरकारी अस्पताल उसके डॉक्टर और स्वास्थ्कर्मी कर रहे हैं। देश में पलंग वाले हर चार अस्पतालों में से तीन प्राइवेट हैं, हर 10 में आठ वेटिंलेटर इन्हीं के पास मौजूद हैं और उसपर देश के 10 प्रतिशत से भी कम कोविड के मरीजों का ये इलाज कर रहे हैं। बहरहाल, इसी महामारी के चलते अब देश के नीति बनाने वालों को सरकारी और प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर पर बनाई अपनी नीतियों पर दोबारा गौर करना होगा। कहीं ऐसा न हो कि प्राइवेट अस्पताल सिर्फ इंशोरेंस घारकों के इलाज पर ही खुद को सीमित कर लें। आज जिस तरह पूरा देश कोरोना से अपने-अपने स्तर पर लड़ रहा है प्राइवेट सेक्टर को भी चाहिए कि तमाम वजहों के बाद भी वो भी अपनी जिम्मेदारी निभाएं। नहीं तो सरकार यह तय करे कि उससे प्राइवेट हेल्थकेयर सेक्टर को मिलने वाला भारी प्रोत्साहन और सहूलतें आगे भी जारी रखे या रद्द कर दे।

 

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